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हवा में मौत के जहर का कारण कौन – पराली या प्रशासन ?

सोर्स – द इंगले पोस्ट 

भोपाल – मध्य प्रदेश में वायु प्रदूषण लगातार बढ़ता जा रहा है।सरकार के आंकड़े ही बता रहे हैं कि स्थिति भयावह है। और इसके बाद भी शासन और प्रशासन लकीर लकीर पीटने तक ही सीमित है। कोई भी दूरगामी योजना अब तक धरातल पर तो छोडिए सरकारी फाइलों में भी दौड़ती नजर नहीं आ रही है। केंद्र आंकड़े बताते हैं की पराली जलाने के मामले में मध्यप्रदेश की स्थिति सबसे खराब है। सरकारी आंकड़े ही बता रहे हैं के पराली जलाने के सबसे अधिक 11382 केस मध्यप्रदेश में हैं। पंजाब 9655 हरियाणा 1118 मामलों के साथ मध्य प्रदेश से बहुत पीछे है। सरकारी आंकड़ों में ही एक और चौंकाने वाला खुलासा यह हो रहा है कि पिछले चार सालों में पराली जलाने के मामलों में पंजाब में 86% तक कमी आई है वहीं। इसी समय में मध्य प्रदेश में यह आंकड़े दोगुने हो गए हैं। मध्यप्रदेश का श्योपुर जिला 2024 में पराली जलाने के मामले में सबसे आगे रहा जहां 2424 मामले मामले मामले सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज हुए हैं। मध्य प्रदेश के अन्य क्षेत्रों में जबलपुर दतिया अशोकनगर गुना गुना ग्वालियर की स्थिति भी भयावह है।

सबसे पहले हम यह समझते हैं के पंजाब और हरियाणा ने किस? योजना के तहत पराली जलाने के मामलों को काबू किया है उन्होंने ऐसी। क्या योजनाएं अपनाएं जिसके चलते किसानों में पराली जलाने की घटनाओं को लेकर जागरूकता भी आई और पराली जलाने के मामले भी कम हुए। आपको बता दें कि पंजाब हरियाणा एक समय पर पराली जलाने के मामले में सबसे ज्यादा सुर्खियों में रहता था। पंजाब हरियाणा सरकार ने पराली जलाने के दोषी पाए जाने पर 25000 रुपये का जुर्माना लगाया और जमीनी स्तर पर इस तरह की कार्यवाही भी की गई जिसके चलते तमाम क्षेत्रों में। पराली जलाने की घटनाओं में कमी आई। साथ ही सरकार ने यह फैसला भी किया कि जो किसान पराली जलाने का। दोषी पाए जाएंगे उन्हें सरकारी योजनाओं का। लाभ नहीं दिया जाएगा।इस निर्णय के भी सुखद परिणाम देखने को मिले। पराली जलाने के लिए तमाम यंत्र यंत्। भी उपलब्ध है। इन्हें खरीदने वाले किसानों को सरकार ने पचास प्रतिशत तक सब्सिडी की घोषणा भी की। सबसे बड़ी समस्या यह है कि यदि इस पराली को एकत्र कर भी लिया जाए। तो इसका उपयोग क्या हो इसके लिए पंजाब सरकार ने ईंट भट्ठों में पराली को ईंधन के रूप में प्रयोग की युक्ति निर्देश के रूप में लोगों तक पहुंचाई। पराली का उपयोग कई जगह पर ईंधन के रूप में या चारे के रूप में किया जा सकता है। यहां सरकार की यह मेहनत रंग लाई। और पराली जलाने के मामले 86% तक कम हो गए।

अब हम आपको बताते हैं के मध्यप्रदेश में शासन और प्रशासन की व्यवस्था नाकाम क्यों रही। यहां पर हर साल कृषि विभाग और प्रशासन के पास पराली जलाने वाले पॉइंट्स की सैटेलाइट इमेज पहुंचती है। इस सैटेलाइट इमेज की फाइल को विभागों में खूब घुमाया जाता है। लेकिन ऐसी कोई जानकारी नहीं है कि प्रशासन द्वारा दोषी किसानों पर कोई कार्यवाही की गई हो कुछ वर्ष पूर्व मैंने जब भितरवाह डबरा क्षेत्र के कई गाँव में मौके पर जाकर सैटेलाइट इमेज। में दर्शाए गए क्षेत्रों में पराली जलाने की घटनाओं को साक्षात देखा और इस संबंध में तत्कालीन जिला पंचायत सीईओ को सूचित किया। तो वह भी किसानों पर किसी भी तरह की कार्रवाई करने से बचते नजर आए। मतलब मध्य प्रदेश का शासन और प्रशासन किसानों को जागरूक करने के लिए न तो किसी तरह किए कुछ अभियान चला रहा है न ही पराली जलाने की बढ़ती घटनाओं पर। कोई सख्त जुरमाने की कार्यवाही कर रहा है। मध्य प्रदेश में दो हजार दो में पराली जलाने के मात्त 454 केस थे। जो दो हजार सोलह में बढ़कर 4559 हो गए। और वर्तमान में तो यह आंकड़े 10 हजार के ऊपर पहुँचने की संभावना है। कृषि विभाग बताता है कि पिछले कुछ सालों में सोयाबीन की जगह धान का रखवा मध्य प्रदेश में बड़ा है और धान ही पराली जलने के चलते ही यह आंकड़े बढ़े हैं। किसान लागत और समय बचाने के लिए पराली को खेत में ही जला देते हैं। लेकिन यदि यह व्यवस्था है तो यह शासन प्रशासन की असफलता का परिणाम है।

अब हम यह समझने की कोशिश करते हैं के पराली से बढ रहे प्रदूषण। को रोकने के लिए मध्य प्रदेश सरकार और प्रशासन क्या कर सकता है। किसानों को पराली हार्वेस्ट कर उसे चारे के रूप में बेचे जाने या ईंधन के रूप में बेचे। जाने के लिए जागरूक करना चाहिए। साथ ही किसानों को उत्साहवर्धन करने के लिए पराली बेचने पर भी अच्छे एमएसपी को लागू किया जाना चाहिए। यदि पराली भी किसानों को एक लाभ की वस्तु नजर आएगी तो उसका अच्छा मूल्य मिलेगा तो किसान निश्चित ही पराली जलाने की बजाय उसे बेचने का विकल्प चुनेंगे। पराली काटने के लिए मशीन उपलब्ध है। ऐसी एक मशीन भितरवार क्षेत्र में कार्य करते हुए मैंने देखी थी। जो निश्चित ही पराली को काटकर चारे। के गट्ठे के रूप में परिवर्तित कर रही थी। इस तरह की मशीन शासन को और कृषि विभाग को किसानों को पराली काटने के लिए निशुल्क उपलब्ध करानी चाहिए। धान का रकबा करने वाले किसानों को पराली के नुकसान बताने उपराली। को विकल्प के रूप में उपयोग करने के लिए विशेष अभियान के रूप में प्रशिक्षण शिविर आयोजित करने चाहिए। मध्य प्रदेश सरकार को पंजाब के तरह ही जुर्माना लगाकर थोड़ी सख्ती भी करनी चाहिए। जिस तरह धान का रकबा बढ़ रहा है पराली भी बढ़ेगी लेकिन प्रदूषण न बड़े उसके लिए। दूरगामी योजना शासन स्तर पर बननी चाहिए। और प्रशासन को जमीनी स्तर पर उसे कारगर बनाने के लिए प्रयास करने चाहिए। प्रदेश को प्रदूषित जहरीली हवा से बचाने के लिए। क्या मुख्यमंत्री डॉ॰ मोहन यादव अच्छी कीमत पर किसानों से पराली खरीदने की घोषणा कर सकते हैं?

अजय गजेन्द्र इंगले 

Master_Admin

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