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मुरैना

कर्मवद्ध आत्मा संसार में भटकती रहती है-आर्यिका स्वस्तिभूषण ज्ञानतीर्थ जैन मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा सम्पन्न

लक्ष्मण सिंह तोमर 9926261372

हेलीकॉप्टर से पुष्प वर्षा-चल समारोह भी निकला

मुरेना। क्रमवद्ध आत्मा संसार में भटकती रहती है और कर्मोतीत आत्मा सिद्ध शिला में जाकर विराजमान हो जाती है । केवलज्ञान की प्राप्ति के बाद ज्ञान चेतना की अवस्था सिद्धावस्था है । इन दोनों में ध्यानसीन हुए केवली अर्हंत भगवान के लिए ही मुक्ति के महाद्वार खुल जाते हैं । जीव के मुक्त होने पर इंद्रादिकगण उसका उत्सव मनाते हैं, यही उत्सव मोक्ष अथवा निर्वाण कल्याणक कहलाता है । उक्त विचार गुरुमां गणिनी आर्यिका स्वस्तिभूषण माताजी ने ज्ञानतीर्थ पर धर्म सभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किये ।

श्री ज्ञानतीर्थ पंचकल्याणक महोत्सव में प्राण प्रतिष्ठा के तहत मुनिराज श्री आदिसागर, निर्वाण प्राप्त कर भगवान आदिनाथ बन गए । इससे पूर्व प्रातः नित्य नियम पूजनादि के पश्चात विश्व शांति हेतु महायज्ञ किया गया ।

जैनागम के अनुसार धातु अथवा पाषाण की मूर्ति के पंचकल्याणक किये जाते हैं । गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान कल्याणक के पश्चात मोक्षकल्याँक की क्रियाएं की जाती हैं । दिगम्बराचार्य उक्त मूर्ति को सूर्य मंत्र देते हैं । उसके बाद वह धातु अथवा पाषाण की मूर्ति भगवान बन जाती है ।

जैन समाज के सुप्रसिद्ध प्रतिष्ठाचार्य बाल ब्रह्मचारी जयकुमार निशांत ने बताया कि श्री ज्ञानतीर्थ क्षेत्र में श्री ज्ञानसागर जी महाराज के आशीर्वाद एवं प्रेरणा से नवनिर्मित जिन मन्दिर में विराजमान 16 फुट ऊची पाषाण की पद्माशन मूर्ति आदिनाथ भगवान की प्राण प्रतिष्ठा हेतु छः दिबसीय पँचकल्याक महोत्सव का आयोजन किया गया । महोत्सव के अंतिम दिन मुनिराज आदिसागर जी मोक्ष पद प्राप्तकर भगवान श्री 1008 आदिनाथ बन गए ।

श्री पँचकल्याक महोत्सव में सप्तम पट्टाचार्य श्री ज्ञेयसागर जी, आचार्य विनीत सागर जी, गणिनी आर्यिका लक्ष्मीभूषण, सृष्टिभूषण, स्वस्तिभूषण, आर्षमति माताजी सहित 50 से अधिक का सानिध्य प्राप्त हुआ । कार्यक्रम का मुख्य निर्देशन स्वस्तिधाम प्रणेत्री गुरुमां गणिनी आर्यिका स्वस्तिभूषण माताजी ने किया ।

इस ऐतिहासिक खुशी के अवसर पर जैन समाज में काफी हर्षोल्लास का माहौल था । इस पुनीत अवसर पर ज्ञानतीर्थ क्षेत्र जैन मंदिर पर हेलीकॉप्टर द्वारा पुष्प वर्षा की गई । हेलीकॉप्टर ने लगातार 5 उड़ान भरकर निरन्तर ज्ञानतीर्थ जैन मंदिर की परिक्रमा करते हुए हेलीकॉप्टर में सवार साधर्मी बन्धुओं ने पुष्प वर्षा की ।

पाषाण की प्रतिमा के भगवान बनने के बाद 108 स्वर्ण कलशों से मस्तकाभिषेक किया गया । ततपश्चात भगवान आदिनाथ जी को रथ में वैठाकर उनकी सवारी निकाली गई । चल समारोह में हाथी, बग्घी, बैंड बाजों के साथ हजारों की संख्या में महिला एवं पुरुष मौजूद थे ।

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